पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५६१

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| {ub मध्यन्धुपित्र। [सं० १८३!, ये महाशय अनुफ्युत् विपा एघ घ वद्द ही अपश्य लिन्न | जाते हैं, परन्तु इस पहुतायत में नहीं है कि इनके तीबसमाली- घकः यत्तराते हैं । इस पत्र अटे में पप से इन प्रशस्त पितर दुषित नहीं ठहर सकती। ये महाशय पैसे ऊँचै दूर से मुक्त भी नहीं हैं कि हम इन गमाना परमोत्तम विर्य में कर सकें। इन सच बात पर ध्यान दैवर हमने इन्हें तृतीय श्रेणं या पत्र माना है, जिस ३ नायक यही हैं। नाम-१२३४} मञ्जि । कविताका-१८६६ पूर्व । विवरा-तैप बचि फी थे म । इनफा ई प्रम्य देखने में नहीं आया, पर इन की फवचा पैसा अंदर है कि इन की गणना करिगे के गर जाती है। उदार । बात बली चालचे पी जहाँ फिरे आत सैहानी में गात स्वादाने । भूपन वाज्ञि र कादिको माझ गयी छुटि छाज़ की घाना । या वर भीति है वनिता सुले पीतम की परभात पयामा। अपने जीवन के लम्ति अन्तहिं आयु की देख्न मिटायति । । नाम--(१२३५) रामसहायदास । इस कचिचूडामणि फी घनाई हुई एक तसई पी हैं, जिसका नाम इनके नाम पर "रामसतसई' था, परन्तु उसमें उसके विषय । पर काम हो र 0 5 5 अरू बेल ३ मी, ३