पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५६४

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माश] | उत्तराञ्चकृत ग्रंण । १७३ मैंद उर्च, अंशिया नचै, चाहिं कुचे, सकुन्नाय । दरपन में मुल छथि स्नी दरप भरी मुसुकाय ।। याई लाळ निहारियै यद् सुकुमार विभाति । इन कुचके भार हैं लश्वकै सहयाक कटि जाति || हम इसे फघि फी दासी की श्रेणी में रखते हैं। {१२३६) ग्वाल कवि । ये महाशय धोजन सेवाम के पुत्र धै। इन्होंने यमुनालहरी में उसके बनने का समय एवं अपने कु, छिकाने आदि का हाल सूक्ष्मतया लिसा है। उसले बिदेत सा हैं कि ये मथुनचाली ३ बार सवत् १८९, में इन्होंने यमुनाछहरी मनाईं। कुर शिव- सिंङ्ग ने इनके चिपय में येह लिला है:- | | कवि साहित्य में पई चतुर गये हैं। इनके संगृहीत वा अन्ध ज्ञदत बड़े बड़े दमारे पास ६, मार शिक्ष, पी- पर्चर्स, जमुनालहरी, इत्यादि नृा छदै भन्य, भार साहित्य: दुषण, साहित्यदर्पण, भक्तिभाव, गारदोहा, ऋगारकवित्त, रसरंग, अलंकार, इग्मीरइट, बहुत सुपर ग्रन्थ है।" से उन्होंने इन पाँच पैसे अन्यों के नाम लिखे हैं नै उनके पसि में थे और अन्य पांच अन्य उनके पास ये, जिनमें से दे संग्रह हैं । इमारे पास ग्वाल कवि के यमुनालहरी और कवि हृदयविनोद नामक ग्रंथ है, और इनके रावत रसरंग (१९०४) 'मेर दशशिष भी इसने देते हैं। यमुनाइहरी में १०८ कबि घर ५ देशा हैं 1 कविहदयना; वास्तव में घाई चन्द