पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५७

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सेनापत्ति-कक्ष ] ांत कर । १७१ रचना-काल--६७०० ! १ रिघर – ध । नाम-(३३६) प्रतापसंड्रग सिया उदैङ्क तथा दी। अन्य-स्ट काव्य । रचना-लि-७०० ।। विचर]--३ पञ्चले जईपुर में राजा राजसि'६ के यद धे । धाँ गड़बड़ हेर जाते से चुदी चले गये। वहीं इशा जागर संथा रयिरज्ञा का खिताव मिला प्रै पिर थे घड़ीं रहे। इनकी कविता साधारण धेशी की है । नाम-(३३) जब । ऋन्थ–अन्थस गां । हवन काल---१७०० । बिबरग-साधारण धे। मैं माशय छाद्जी ६ शिष्य थे । इन्होंने पी वैवी दिये हुए भी फवा की है। नाम-(३४ ४) सभाचंद । सन्थालाचरेत्र १११, फ्ध | चिना-वाल-२२० । नाम-१३६ १) रघुराम गुप्ता अहमदादचासी । अन्य-१) सभालार, १२ माघचलास ! लना कर--१७२ } म (३४३) जललि। चनावाद-१६।