पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५७०

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चन्द्रशेखर ] उत्तरानं प्ररम्। ६७७ चिपये में इनके धन अत्यन्त मनाहर हैं। इनफा प्रताप यन करने में बड़ी पटुता प्राप्ती और इनके पैसे बर्गन चैते दी धन आते हैं। उदहरण-- उचित उदंड भारतं व सै प्रताप पुंज ।। | वैखि देखि वुवन टुनी के दांपत हैं। सहज सिकार चूम चैसा की धुकर धाफ, वैसे इस रिपु को न लेंस लयित है। शैप साहै श्री नरेन्द्रसिंह महाराज, राधी सभा में पैन सौ फपित है। उड़ गए ज्ञा ली अरिन के करेजा, अब न १ मजेदार नेजा गहियत हैं ॥ १ ॥ आलम नैवाज़ सिरताज्ञ पातसादन है ! प्राज्ञ ते दुराज्ञ के नरतिहारी है। ज्ञाके हर गित अछि गढ़वारी, | डगमगत पद्दाहु मै डुलन मईि सारी है। रंक जैसी रहन ससंकित सुरेस गये। देस देसपति में अतीक अदि भारी है। भारी गद्धारी सदा जंग की सयारी धाक माने ना तिहारी या इमर इठ भारी है ॥ २ ॥ इनकी शृगोरकविता है उदाहरण है। छ यहाँ लिचे -आते हैं-