पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५७१

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१२६ मिश्रन्थुकिम् । [सं० १EE: है ग्रन दिन में थमा दिनु कारा । पैर पर पुरयाम् ।

  1. r मु न माझ मनी,

कुल कान घो घर भतिजाम ॥ ६। तुम भनि दिनु सिगरी, कवि शेप दे दिन यानें। गैल में पद र भरो सपि । चायिका नन्द परयो से तार्म l १ ॥ था। थारी पैसवारी नवल किसरीसर्च, भारी भारी मातनि दिइँसि मुम मारतीं। घसून बिभूपन विराजित विमठ व, मदम मरावं तक तुम है ॥ प्यारे पाठसाह के परम अनुमि गो, चाय भरी धरयल पल दृग जाती। काम मला सी कलाघर' की कला सी, | चाय सम्पक लता स नृपला । चित ३रतीं ॥३॥ उपरोक्त उदाहरणों से घg भी पित है कि पीर पदमैत्री की अा व्यवहार कर सकते थे। भारी अद्दता, प्राबल्य पर घि इनकी कविता के प्रधान गुण है। भापासादि में वैशाल, लील, भूपण, हरिकेश६ कुछ ही कचिये की छाइकर किसी छवि में ऐसी उमंगे:पादक शक्ति नहीं पाई जाती । । उदै भानु पछिम तच्छ दिन चन्द्र प्रकासे । उड़ि गग ५६ च काम र्पत झोति विनास ॥