पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५७४

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चन्द्रशेखर ] चराकृत प्रश्न तजै गरि अरबंग अचछ धुच असुन च । अद्यक्त पनि घय होय नैरु मन्सुर गिरि ॥ सुरतरु सुम्नाय लेमल म मीर सेक सब पर। मुत्र वचन दौर इग्मोर को वेलि न यह तघह ट्री ] परजी में विविध पियों के यथैसित घन करने को | शक्ति बहुत बढ़ी पट्टी । अलाउद्दीन की सुया, मैकिन चार हुम्मर कर घादनुवाद, जद्दी सेना की रणथम्भौर पर मगर है। वारी, और इग्गीरदैव का जाहर पर चैकि, इन वनों में कवि की पता प्रकट होती है ! ही सेना के भने में ही फल अनन्द किया है ! भा) मीरजादे पीजादे या अमीरजादे, भागे ज्ञानज्ञाई न भरत चाय कैं। भज मन्त्र वाज्ञी रथ य न सम्ही प? |ळून ६ गाळ सूर सहभ सकाय के tt भाग्यो सुलतान जान वचत न जानि वैरि वरित वितुंड में विरानि विलय के । जैसे जंगल में प्रीपम की आगे बढ़े भाग झा महिष घई बिललाय कै ।। हथियां या भी धन इन्होंने अञ्ज किया है पैर काट उड़ानै में शदों द्वारा माने विमान तक न भरी। ये महाशय मुख्य धन पर पाठक झा बीच पहुँचा देते हैं। र व्यर्थं वन से कथा । नहीं हासे । कहीं फद्दी में कुछ घषय मच्छन्न रीति पर मन कर जाते हैं और उनका पूर्ण तात्पर्य