पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मैतपि । इचहान्छे छ । ८१ चिन्तामनि चिन्ता के हुरन हारें मेमस वरय जनश वर वानिक बरन है। नन्न विधु-पूजन सुमन सघ दुपने ये रघुवंस भूपन के क्षित रन है ।। कचित्त और हरी नामक इनके दे और अन्य मिले हैं। (१२४०) एसजनकृत भक्तिरायलीमापा (१८८०) ग्रन्थ छोटे साइज के ९० पृष्ट की है। हमने इसे छतरपुर दरबार में देखा । काव्य-चातुरी इसी साधारण ४ थी फी है। (१२४ १) प्रताप साह । मैं माशय नन्दीज़न इतनेस के पुत्र थे और चरारी के महाराज विक्रम सादि के यहां रहते हैं। इन्होंने संवत् १८८२ में व्यंग्यार्थामुद्दी र १८८६ में फायविडोस वायर, जैसा कि इन मथों से ही निवित होता है । यद्यपि चे महाराज इस समय के करीब सा पर्व प्रथम स्वर्गवास है। चुके थे, पर सरोजकार नै अनचा इन का पन्ना-नरेश महाराजा छत्रसाल के यह हेना लिख दिया है। इसी भ्रम में पड़ कर जाज्ञ साढे ३ मपि साहि पैर मताप नामक दी फ़वि माने हैं और इन्हीं प्रताप सादि के अन्य में व्यंग्यर्थिामुदी प्रेताप के नाम लिग्न दी और शैव अन्ध प्रताप सात्रि के नाम । यस्तव में प्रताप साह पक । फर्मच • ‘या, चार सय भन्या कविरल ६ चनाप ६। महाराज इजराइल ॐ यद किसी प्रताप कचि का होना पाया नहीं आता।