पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५७९

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पिपिनाए । १० १८८२ एनफी पिता में रहें : सरयत से पार्य आते हैं, धरन थे कई कि बुरे छम् अहुत हूइ सं कधी मिढ़ सकते हैं। पूजती धर पुग्ने यता तिनवः मन में भरि भोति प्रति है। न ही सीप परीमन में चल यः पनि पाईनाव न जाति ६॥ लाइति या परसाइति की यर साईति पैसा न र स्वाति है। ॐन मुभाच री तेरा परी घर पूजा का दिये उचाति ६ ॥ मताप नै प्राकृतिक पर्गन भी अच्छे किये ६ ।। चंचला चपल वा चमकत चारी और इभि ऋमि घुर धरने परसत है । सातले समीर हुसद वियागिन सँजान एमाञ स साप्त सरसत हैं। कई परताप अति निविड़ अँध्यार माईं माग चलत नद्द ने देखा है। झुमड़ झळानि घट्टै कोद तै उमड़ छु धाधर धारन अपार चरसत है 1 इस कचि में उइइता भी खूब पाई जाती है। यथा-- महरिज राम राज रावरी सजत दल हुन पुत्र अमद्ध निन्दित महेस के । से | इन फेते गवार गनोम पन्नग पाल किमि डरन पगैस के । ६ "रताप धरा धसत घन फसमसत कमठ डि फडिन फले के।