पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५८०

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श्रीभर ] उसलंकृत करए । कहर फेल, इहरत है दिगांस दस, | लद्दरत सिन्धु, थरत फने सेस के ।। प्रताप को रामचन्द्र झा इष्ट सा था; सी नै एक ने इन- का नयन्नि लिया और फिर जहां तहां उनकी प्रशंसा के अद्भुत ने छन्द बनाये । इनकी कयिा दर प्रकार से प्रशंसनीय है । हुन इन्हें दास फांच की भै गो में रखते हैं। | (१२४२) श्रीधर ( ठाकुर सुब्बासिंह )। ये महाशय थळ चालै राज्ञा वएतसिंह के लघु भ्राता पैस ठाकुर जिला सारी के निवासी थे । इनके केई संतति न धी। मापने संवत् १८८४ वि. में विभेदतरंगिण नामक ग्रंथ संगृहीत किया। अनुमान से इनका जन्म संवत् लगभग १८५७ का जाम पता है। यह ग्रंथ इन्होंने अपने गुरु मचि सुचेना शुरू की सदमिता से बनाया । इसमें भावभेद, रसद, श्यादि का इन विस्तारपूर्वक किया गया है। श्रीधरजी ने लक्षण अपने देय हैं पर उदाहरण में प्राचीन कवियों के छेद छिन्ने है। दुवंस के झूद इसमें बहुत से लिखे गये हैं। स्रोधजी- रा उदाहरण पचीस सौ से अधिक न होगे। विनेदागिणी | मैं धीधर के अतिरिक्त जिन ४३ प्राचीन पैर नपान अन्य गावियाँ के द् उदाहरण में लिने गरी उन नाम ये | पुनाय, वैप, अझ, शंभु, शंभुरज, दैव, श्रीपरि वेनी, कालिदास, सुदंस, कबिंद, फैशप, चिंताम, कार, देवकीनंदन, पद्माकर, भूल, बलदेब, | सुंदर, संगम, जपादिर, शिवदास, मतिराम, सुलतान, सी-