पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५८१

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| १८६ मिश्रपन्चुबिनेद। [H० १८८४ मुन्न, टी, धिय, सि, परमाद, माद्दा, निहाल, कविराज, सुमेर, जुगराज, मदन, नैयान, राम, परश, भि, रस- पानि, मनसा, इरिश, गैपाल, प्री छाय। यह प्रथ घर- लिसित फलकैप साइज ॐ ११६ पृ पर हैं और हमने इसे ठाकुर रिवलि , मताने ठार मानिदादासजी के पास देखा है। इनकी गणना समिण क्षेणी में है। ज्ञासु की दीपति दीप से सामुनी दामिन कु इन सरि आई। काम की माने सदा मुटुबानि सनेह नौ दिति म पिछाईका || अग अनुपम फी भी सन यान भीतम मुद्दाका । मामै रची विधि मूरति मेरमो धर पैसा सद्दित नाइका ।। (१२४ ३) बाबा दीनदयाल गिरि । ये मइरशेप का के पश्चिम द्वार में बिनापक देय के पास र थे। इनके यमाचे दुध दी प्रस्थ अर्थात् 'अनुराग ' मॅार अन्याचियपत्रुम हमारे पास पर्चमान हैं। शिवजी ने इन अन्य के अतिरिक्त इनके 'बाबदार' नामक एक तीसरे ग्रन्थ का भी नाम लिग्नर है, परन्तु जान पड़ता है कि पप ग्रन्थ उनके देखने में नहीं आया। अनुरागवाय चैत्र शुक्ला ५ सय १८८८ की समाप्त हुआ था, और अन्याक्तिकल्पद्रुम सबत् ११३२ विमीय मास सदी में वसन्त पथमा के दिन । इन सपते का प्योरा मार घावा शो के निषासान का हार इन ग्रन्थों से ही विदेस हेाता है। आन पड़ता है कि ये महाराज सय काम में ही रहे। इन्होंने ये दाने ग्रन्थ फाओं में ही बनाये थे ।