पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५८५

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| बिधुचिः । [सं• । अट्ट गज़ एगि नई इग्र इलमा पमन्यु ले आये हैं कि उन्होंने अनेकानेक ग्रन्थ नियम संर म्यग्र भी कार्थता । म घन्दिा २३३ पृष्ठं का एक सहा प्रन्थ है, जिसमें दावा भी शमिको है। बिना ठीक ५ यादप्रय साधारण पाठ की समझ में भी न पाता । इसमें पोपान्त चित्र काय ६ र प्रायः सभी प्रकार के चित्रों का हममें उत्तम और पृi चीन है। हम इ की भी बधुत मन्तप्रदायक । चित्र चिता पा विचार छाड कर इस स्यतन टाट ने देने पर इए छन्द घड्त नहीं है। इस मारण यह है कि इसमें इन्दिचय पर अधिक इन र गया है और इन फी चित्राय ने दे कारण नारा करना पड़ा है। फिर भी इस प्रन्थ में प्रष्ट छन्दों का प्रभाव नाई और अनेकानेक उतम चित्र देस कर दव-पांडित्य की मु से प्रशसा करना पड़ा है। चित्रकार इतना सागपांग किस कमि नै न कही है और इस प्रन्य से क्षेत्र चित्रशय शायद ही किसी भी अन्य ३ ६ । इसमें सादात अर्थों के फरिच इमान हैं और फिर भी इन मापा बिगड़ने नही ५ है । इस कवि श हुने ताय झी भैण में उपते हैं। उदाइरसाय कुछ छन्द नीचें लिघते हैं - । साथै परित्त अमृग इलेप | वैर इस करि साई शायदे हैं इरे पायक परम व में यानिय । ६ वैन नद्रा प्रिय युग शुभ रजत है पर झव, अचि रात्र कि गानिये ॥ धरम प्रगट किं धर भाग नि चिर से त ६ वचन प्रमानिय । मन थाशराज पुस ।

  • ५२, र मेसे रि दर किधी मैदा तिष ज्ञान ।

कीं या साँचेर