पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५८६

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६६।। बलवानसिंह ] उत्तरार्द्धरण । बघई करा । सीकर हालत में सुमन सर पर राजे द्विजराज दुर्ति हंस कलरेत जात । क क भनि मृदु सुदान बागी मैन सेन, रसन एमालहिं भरत ज्ञान, साम सुशी वैस सन इलय और उधरत जात । शि विपरीत किधी जय कवि इन कुता ज्ञान झरत जात ॥ | दमक का कनक लत तन मद इसन :

  • ज्ञ मदने कमळ चर' मञ्चन

चमक पर; वचन सरस मन किधी जय इन्द प्राज्ञ बात है । सघन घन। मटन करत फ न मन लसुनु गश खरन नरम सन अनेन नि । नयन सयन सरन छैद संग फार्म मन । रजत चलन न ध य र | संत पंप व अपन पन ३ = अयोध्या चाले रोबों के | मंत्रि में से हैं। अन्ना-३)रामटेश{" :):):) माननीति, (३) रामारीस जन्म-६८। इत्म र भाषा मनाएर हैं। / निः हैं। इन पणन साधारय वि न इस इमारे पाल ६, और प्रधान घायल-१८८९ तिर्फ अन्नों में नदि इन ३३ से में इन अमलेश, 1 कति म ने इस है। ब्दाः- ३ ते ६ ३६ देख ऐरिदनबरन ३ ३ मेरम्वा । सम्वति माता ।। रेवा निवल सुघदाता हैं!