पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५८९

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में आत।। इममें आ । ग्रादिवित् । [सं० । थई राजे मग तक इस तजंट,टची (gu ३८), रस्म- अनेकानेक ग्रन्थ घनया का ये वामिषापदविटी (ए" ५२ चन्द्रिका २३३ पृष्ठ का पुत्र, बड़वासप्रकाश (१० ३३ है। विना शेषा के यद्दप्रन्ध य सीताराम-उत्सयूप्रकाशिका (१) के चित्रों का इसमें उत्तम 1 नफारसा (पृ० १०), सीताराम वहुत मुन्नपदायक ।। चिघ- "पाययमादायली (pe t!, स्पतत्र दृष्टि से देखने या प्रेममयनी (१० ३०), धमाडा यारा यही है कि इसमें । ८), उपदेशनीतिशतक (पृ० ८ माया है और करि पे चित्र दाइग्धशतक (पृ. १०), मगर सचे करना पड़ा है। फिर भी इस और अनेकानेक उत्तम व

  • मारे देने में नहीं आये हैं। प्रन्।

से प्रशसा करनी पड़ती है। ये एक आशुकवि थे। इनके न कचि नै नीं कक्षा ६ मैर इर दी किसी भाषा झन्ध नं ६ मदनाला (११ अध्याय में प्रज्ञ वनिम्न वर्तमान ६ पार फि पमा नन्तप्रशसा १ ४९ छन्द), नाम- है। इस कप के दम त. । (५२ छन्द), पैराग्यशत १५५ कुछ छन्द नीचे लिव्रठे हैं. : "दर, भकान्ति (९६ छन्द), सधाम- | सप्ता) गं ५ छन्द), रूपकान्ति (१६८ वर हस करि साई धार के २३ छन्द), पतिरस्य (१०५ 1 पखानिये । पर्खा नैन। वन, पेपर सिद्धान्तरात्तैम (५२६ • रुचि लेक लोक ३ की थी और इतने चिपर्यों में 4 छथि छानत है अ प प्रकट है। इन की गामा तौर

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