पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/५९७

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१६५६ Fधन्युतिने! भाम–(१३० ४) पाल कायस्थ, या ! मंप-गोपालपचीसी । पटाकाळ-१७ || विव–नारा पिपनापसिंह जु नि । म सघाए झै गरी । नाम-(१३०५) गरिपर। । मन्थमदर्ज की घासु, मकदी की. इन ! कविता --१८८७ । । थियश-अनारस के गैपालमान्दर ॐ मः । नाम (१ ३ ० ६) जगन्नाथ क्षप्रिय, के के प्रन्य-(१) जुलजात्सय (युत्सिव) २] समाधिप । विपृष्ठ पवित्रीकाल--१८८७ | नाम--(१३ १४) तैपरदास । र, ' धन्य-शदाबली (पृष्ठ १३४)। मी कविताका–१८८७ नाम-११३०८) दयाळ कंचि गुज़री ! प्रन्थ दायापक (पृष्ठ १६६ गद्य-पर)।, मी " कविताक्यल-tz। । सिंद १ घिर–घर्मनीति | संपत् १७:५३ वाले है । दयाल का नाम लिखा है। विद, के हैरत थे। | बिष्ट ४७, पद्य १८८०