पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/६०

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मिथुपिन् । निलग्नित दें। यहारी जी ने जिस शरद् में महाराज के भिजाया - महि पनि नदि गधुर मधु न” विषास यदि पछि । अली को दी तेई धिया ने न पाल । इस पषि महाराज पार निकै र तभी से दूर विद्दारी का बड़ा मान देने लगा। इस के बाद पाते हैं कि बिहारी ६ प्रति दादा १ अशरफ़ी मिटती रही और ये महाशय समय समय पर दाई घना और महाराज न घेते रदै । इसी तरह सात सी दाई एकत्र देर गये, जे पर्छ मन कर दिये गये। इनके सुलपियक कुछ लोग सन्द उठाते गार भाट चलाते हैं। इम ने दिनयरा में इनके में होने के विषय में कुछ प्रमा दिये हैं। पीछे से यह निश्चयप से कराने पड़ा कि ये मदार चयै थे । इत्र के अंदाज अमर चैाय तुदी दपार के राज़फाई हैं, जिग्न का पर्थन इस एन्ध में सय १९५३ वो चिप में किया गया है। उन्होंने दो छन्दों द्वारा अपने पिता से खैकर रिहा लाल तक सय पूर्व पुर्षों के नाम गिना दिये हैं। वद नै छ उनके पन में लिने हैं ।। सतसई में कुल ७१ देई हैं और ७ देश में उसकी प्रशंसा की गई है। इस प्रप पर घंटुत से निपे नै कायें का र घई ने इसी के प्रतिक्रि पर दलिया, सचैया, इल, दर, इत्याद घनाये हैं । इनके टोफाकारों में सुरति, चंद्र पान मुहान अली), कृष्ण, सरदार और भारद जी सुकवि हैं।