पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/६०२

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ब्रजमग ] अज्ञात-कालिक प्रकरए । नाम--(१३२४) ब्रजमोहन । विचरण-इनकी कविता सरस हैं। इनकी गणना तप कवि की अ में ही जाती है । दर का मुन्न रण धरे जेई की उपमा न ऊ समल्यो । ओवन में किस चिलस लग्न मीत सुगंध पिये अलि भूयो। फागल सग मनाइर रंग सुपेन की झाक छ न झुक्यो । मारि भनिरखी नामोहन नारे नहीं मनीं पंकज फुल्यों ।।१।। नाम-१३ २५) पड़ित, विगपूर । वियरया साधारण श्रेणी के कवि थे। इन्हे ने अभी भोपा में अच्छी पहेलियां की हैं। यथा । अगइनु पड़ चइत के प्याट । तेहिं पर पडलं अ६ झप्याट । । ई पदे ना रे । पति कहें बिगपुर कॅरें ॥ (कवारी) नाम--(१३२६) भवानीप्रसाद पाठक । वियर—ये मदाय माजा माँ जिला उभायं के वासी थे । इन्दैनै छायशिरोमणि भामक काव्य का ति प्र बनाया। इसमें फुल ३३७ छद थे, जिनमें लक्षण, व्यजना, बन, ध्यंग्य इत्यादि के दर्शन हैं। इनकी भाषा चैलचाडी तथा प्रजभाषा मिश्रित है। इनकी गणना साधारण धेची में की जाती है । उदाह्रः --