पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/६०४

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मजाइन] अशात-कालिक प्रकरए । १०११ नाम--(३३२४) ज़मान् । बिचर--नकी कविता सच हैं। इनक्री गणना ताप कधि की | श्री में आ जाता है। फेरि फै। मुख राग धरे जेई की उपना में फाऊ जमल्यो । • जैवन ३ विकसै दिले झस्त्रि मीत पुगंध पिये अलि मूल्यो। फैमिल मैग मनेाहर रंग सुन की शेक लग त भ झूलो । नारि म निररत्न जमीन नारि नहीं मी पंकज फुल्यौ ।।१।। नाम-१ ३२५) पति, दिगपूर । विरा--साधारण श्रेणी के काचे थे। इन्होंने भाग्य भाषा में अच्छी पहेपि यही है। यथी। अगच्चनु पठ बहूत मैं प्याट । तेहि पर घटित फ" झाष्ट्र ।। है भर परेर ना हुँ । पति कई विरपुर फैरे ॥ | (कवी) भाभ-(१३२६) भवानीप्रसाद पाठक । विंबर--थे महाशय में। *राची शिळा उर्व के घात्ती थे। इन्द्रेन काव्यशिरोमणि नामक कार्य का प्रतिप्रेथ बनाया। समें कुल ३२० छंद हैं, जिनमें टक्षण, योजना, नि, व्यंग्य इत्यादि के घन हैं। इनकी झापा सिटी तथा मनापा मिश्रित हैं। इनकी गणना साधारण शेती में फी जाती है। उदाहर-