पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/६४

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" प्रोपद। | 5 119 इत्राही तिथि माश्य या घर में चढ़ पाम् । जन प्रति पूनाई र अनिन र उन्नाम । { ३५३) शम्भुनाय लंकी राजा । ये मद्दाशय शम्भुनाs fGE मुन्द्रफी, शम्भु व, नाधव नृप शभु दे दई नामें से दिया है। ये सितारागढ़ के राजा स्वयं पपि धार वरि। ६ दिए पदर पृझ थे। पाते हैं कि अगर ववि मतिराम इनके मित्र थे । इनवा उत्पत्तिकाल सरोज में संपत् १७३८ लिस। ६ पैर ज में इनका कविता १७०७ दिया है। हमारे मत में मतिराम का जन्म १६४ के लगभग इमा और उनका कविता-याट १७१०६ मग है। हमें प शम्भु का कविता-फाळ प्रेज़ के अनुसार १७०७ ६ डगमग चढ़ा है। राज्ञ में लिखा है कि इनका एक नायिका भेद वा अन्य उत्कृष्ट ६, पर हमारे देने में वह नहीं प्रायः । तथापि इनका पैसा अन्य देना अनुमान सिद्ध है, क्योंकि इन नायिका भेद के बहुत छन्द मिलते ६। हमने इनको एक मशिन्न मुद्रित ६ ६। ऐसा चटकीला नदिप मने किसी दूसरे कॉप का नहीं देखा। इस मा कवि में सपा और माप देने या अभ्को चमत्कार देने पड़ता है। इनफे न्द बहुत ही पसाली होते थे। इम इनकी पद्माकर भी श्रेय में पेंगे। उदा ! फाग रव्या नैद नन्द प्रवीन घज्ञ बहु चीन मृदग या) प्रेल्ती ६ सुरुमार दिया जिन भूनन ६षी सहीं नई पावै ॥