पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/६६

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१८ मध्यन्धुवनेछ । [सं० १५ss पायन परज़ परस पाप परिर पुनी भय। सुमन वि सुर गर्न यानि जस गावत जय जय । जेहि चरन सरन नर टुरि सुकवि विप्र बंधन छदि पनि । साहू राम फन पारन समय महाबाहु अर्यमार मनि ॥ था घयला गि घास मैप दर ६स पर पानी। या घपलं अवतंस अंग अम फर घोष यात्री वरा ॥ या भयकं बसना बिसाऊ बयनी पामच सरलं कमा । सा अनुकंप्य सरस्वती सुबदना विद्यापरं दायनी ॥ माम–१३५ ४) मायनसे प्रसिद्ध पन्ना के धर्म-प्रचारक । अन्ध- १ ) झपामतनामा, १ ३) जिविनोद, १३) प्रह्मवाणी, { ४) कीर्चन, (५) प्रगट पानी, (६) बीस गराई का वि, (७) पदवळीं । समय-१७०७।। विचर–इन् । १४ अन्य पराये । कृयामतनाना में शादी के शब्द बहुत हैं। ये महाराज पन्ना में थे और इन्होंने पा के महाराज के द्वारा की पानि नाई। पन्ना में इनकी गुप्त तक पुनर है।ती है । ये च३ ही अच्छे साधु धे। इन्द्रे ने बुन्देलप्रड़ में जातयती जागृत की थी। इन फी स्फुट कविता यहुत सुनी है जो बड़ी ही ज़ीदार और भझिपूर्ण है। चन्द विन शन सुज्ञ चिन सयर शैक्ष बिन पुरा भन्डू विन मद ।