पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/६८

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|५८६ | प्रपन्धुथिनेट। [१० १०१० पाल १६८६ लिया है और दूसरे का १७e८ । जान पड़ता है। ये दाने भीष्म एक ही हैं । सराज के उदाइरह पी उत्तमता रोज पे उदाहरणे से समानती रही है । हम इन फा कविता-काल १७१० मानते और न्हें तय की श्रेणी में रसते हैं । ददाहरग्छ । थेाथि थपत झल्कड घाल विधु भाल सेंदुर सर्व माने घानी बीर घंस फै। | मद जल झरत सत अलि वृन्द सुई कुडली फरा मेन एरस महंस के 11 भीपम भनत ऐसे ध्यान झा धरह नर लैस न रद्द उर कुमति कर्लस का। सांकरे सद्दायक सफल सिधि दायक समय सुभ सत्य पगपूजिये गर्नेस फी / नन्द पत्र कि सै मारिडी सर्टि उतार ६ ते गहने सत्र लेहा । भैई कमान तू काहे पदावति नैनन डाटै ही न रहा । घेत ४ी छिन एक में भीम ग्वालन व दुध दुध दुई। गुजरी वाले न मारु शैयार हैं। दान लिये शिन ज्ञान न ६ ॥ (३५७) दामोदरदास । ये मद्राशय दादू के शिष्य जगायनदान के चेले थे। इससे इन का समय १७३५ संवत् के लगभग समझना चाहिए । इन्ही ने गद्य में मार्कंडेय पुरावा का इल्पा वनायः । यद् गद्य राजपूताना