पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/७

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हिन्दी की दशा
४२७)
पूर्वाशंकृत प्रकरण

'हिन्दी की शा] पूर्वाशंकृत प्रकरण । ४१५ | र चार रन में धादित्य फै। एक बार कुछ समय के लिए नारीही कर के छपमुकुट से सुशोभित घर दिया, माना वेद क्षिात् दीपक राग का असिहए चने, गया । और काल के पीछे उदास है समय, चिचेध विपय-चन की परिपाटी चल्ली थी, उसने और भी पुष्टि पाई मैर दी है। सैकड़ी विपी की बलको से स गपूर्णं वय 1 इस काल में मदरसों में तीन 'रक्ष उत्पन्न किये हैं। इस ने चार प्रकट करके दिखला दिये । नय रत्नों के अतिरिक्त उत्तम कवियों की सैन्या इस फाड़ में बहुत अधिक पाई जाती है । घाइतब में प्रथम कक्षा के इतने कर किसी अन्य समय में नहीं देना पड़ठे', भक-शिरोमणि भरिनाथ, सुन्दरदास, गुप्त गोविन्दसिंट, चुचः से अपने इसी समय का पुनीत कियां । गदागर मानाथर्भर पर में रह कर -समस्त बँदेलंसंद पर धढ़ा बिशाद अभएष |ला और एक हया पन्थ ही स्थापित कर दिया । सुन्दरदास ए.पन्य र अक्षत किया। गुरु विन्द सिंह जी ने भक्ति के में से मिल कर सिर में जातीयता का वीज वाया र सिक्का ( ध क नीच हाल है. यदि यई महात्मा संसार में न हो । देश और महाराजा रणजीतसिंहजी के विधी शताब्दी गोछे ५ विस्तृत राज्य स्थापन करने का भाग्य पाद्मी म प्राप्त {। इस मैदामा नै हिफावत भी मईया की है। नहाना जलपतसिंह, तत्पुत्र मदानी प्रीतलिंद (दीने पूरन ही में राजा राजसिंह, महाराजा छत्रसाल ( चंदेल

  • हकदा ; राजा बुद्धसिंह ( दीनरेश) और भद्दा