पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/७३

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+तराम ] पूर्वालङ्कत छन् । गन्ध मतिराम में महाराज भुनथि मुल्फी के नाम पर मनाया। "ध महाशं स्वपम् अच्छे कवि थे और कमियों का सम्मान भी पूर्व करते थे। छन्दसार के थाही से पृष्ठ हमारे देखने में पाये है कि हमारी ते अपून है। यह ग्रन्थ भी धरम मनदर है। इसके बनाने के पीछे माटु होता है कि महाराज शम्भुनाथ को भी देहान्त गया, क्योंकि इन्हेंने अपना तीसर: ग्रन्य रसराज किसी फी भी. समर्पित नहीं किया । मतिराम या संवन्ध बृ दी मैं राव' बुद्ध के चका में टा । यह समय से १६५ के गभग ६, सेा रसज्ञ इस समय के पीछे बना देगा । यद्द एक भावभेद का परमाञ्चल ग्रंथ है और इसमें भी उदाहरण बटुर ही साफ तथा मनोहर आये हैं। भायिकाभेद पदुमै घाले प्रायः इसे चार जगने का पहले पढ़ते हैं । नायिकाभेद भयभेद फा पफ संग्रामात्र है और भावभेद के अंतर्गत आतम्यनविभाष में आता है, परन्तु गतिराम ने भागकाभेद ६ से ग्रन्थ भारभ किया र अन्त में विभेद का फशन किया । उस जगह पर इन्होंने माप भेषांतर्गत नायिकाभेद चित स्थान दिल दिया है। इसरोज की कविता बहुत मसादरपूर्ण हैं और भाषा की उत्त- मता का चमत्कार इस नतमस्त अन्य में देख पड़ता है। इसमें से बा से उन्६ ते ऐसे उत्कृष्ट ६ कि जिनकी घरात सत्य- संसार में सिवाय चैवी के छन् $ चैर किसी के छन्द' नहीं कर सकते। उलगता में रसराज व पूर्याई उसके उत्तरार्द से कुछ र ग्रा है। ४ मतिराम की मार द्ध अशाप है। सिपः वैपनी के मैं