पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/७८

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| Bh६ निमधुवनेद। ( 4: १७१० महीर सत्रु सलिनम राय भीषद तेरी धाप अरि पुर ज्ञात भय भय से । व मतिराम तैर रोज पुन लिये गुन अंत भी मार मण्डल यि ने ॥ उहत नयत हुटि फुटि टि फाटि ग्रा यिल नुत धेरै इन समय से। नूल से तिना से हरायरे से वेपद से । | रारा ले क्षिमिर में तमीपति ने वेस्र से 7 डेर दल र साझा साईजहां जङ्ग झुरि मुरि गयो । राव में सरम हो । कई मतिराम देव मन्दिर पचायँ ना, ' पर धयों में चेदं श्रुति दिवि यो चसी ।। 1 जैसा रजपूत भया भोज का सपूत वाड़ा वैसे और दूसरी भयो न जग में असी । इन के धकही कसाहन की प्रायु सत्र गाइन की आयु से साइन के किसी ॥ इस कवि नै प्रत्येक छन्द में मुष्य भाव का बहुत ही पुष्ट क्रिया हैं, पर इस पुष्टीकरण कै छाड़ कर अनार्यश्यक मात्र प्रायः । नहीं लिखें। (३६०) सवलसिंह चौहान | अपि ने सत्र से पहले महाभारत की वृहत् फथा में कम रीति से सया प्राट्ट सी प्रों में हर पाई में मात्र किया। अधिः