पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/७९

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प्रजसिंह ] वालंकृत प्रकरण । ॥ ६ ॥ कांश पर्यों में इन्होंने उनकी रचना का संच दे दिया है, जिस से अति हुअा कि खेचत् १७१८ से १७८१ तक इस ग्रन्थ का नेमण हुमा । संवत् १९७८१ की यथार्थता के विपय में सन्देह उठ सकता ६, पर. चालव मैं यद्द ठीक प्रतीत होत है। सबठवि की प्रायः सभी और संवत् लिखने में औरंगजेब पब रजा मित्रसेन का नाम लिख दिया करते थे, पर स्वर्गारोहण पर्स में, ससका निर्माण-काल धवत् १७८१ लिखा है, वैरंगचे व अथवा गियन का नाम म पाया जाता । वालच में संवत् ३७८५ में औरंगजेब न था और शायद मिनखेन भी न है, से यह संवत्त ठीक नैंचता है । जिन | जिन पर्वो का निर्माण-फान इन्द्दने दिया है, उनका व्यारा नीचे दिया जाता है:-- १ भी पई में गत माघ पूर्णिमा संवत् १७१८ ३ क । | प्राईवन शुक्ल ५ संवत् १४ ३ इल्में | कार्तिक शु७ १८ संवत् ४ सभा , चैत्र शु० ९, गुरुवार, संयत् । १७ ५ द्रोण १, आश्विन शु १० (विजया दशमी) १७२७ | " भाद्रपद शु०७ सय ७ माझम बारिक ।। भावगः शु० १० सुधषार संग्रत् १७५१ ८ प राए । अरन 5] ११ बुधवार संवत् १७८६ | सचलप्ति नै १८ ही पर्थ महाभारत ॐ घनाये, जैा सम हमारे पास आड़ है, यद्यप शियसरेज में फेवल १० प' का दाल लिया है। ऊपर तो हुए पार्ट पर्वो के अतिरिक्त कवि ने भार पर्यों का निर्मीयाकाल नहीं दिया है। इन संत फे देने