पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४३८ मिभन्शुदिद। [4. राजा नागरीदारी (प्रा-नरेश ) इस दैदीप्यमान ।

  1. रिद गयि पारदचिये के पक्ष दे गये हैं। भाजप

वन्तसिंह का पनाया हुआ भाषा भूप" अद्य तः अहंकार : सुप्रै के गले का हार देर रहा है। मैं लैग माय: यह अन्य और कुल पठभर का ही अलंगर उमझने के लिए पढ़ते हैं ! राज्ञसंहथी भी कविता अच्छी होती थी। मान कधि नै । फे यह अधिप पाकर इनके चरित्रवन में राजधिलारा नाम विशाल ग्रन्स नाया, जो नागरी-प्रचार प्रन्थ भाला में , ६। महाराजा छत्रसाल की फरता ऐसी मनेाद्दर 216 था, ॐ किवि फी हैराती है। इनका एक ग्रन्थ चु देउप्र में एक प फे पास मान है, परन्तु वह इसे किसी फा दिपाता भी नहीं। महाराज से गुणग्राफ ६ कि इतने बड़े राजा आने पर भी हम पफ दार भूपण फी कसा से प्रसन्न ही कर उनकी 'छकी द्धा अपने फधे पर राय लिया था। हाल ही में इन्हीं के फर्तन में प्रसिद्ध ग्रन्थ छर्रप्रकाश बनाया 1 इनफे दरवार की कविगण जाते और आदर पाते थे । भूरण भार । समान उद्दद सत्कवि, नेयाज जैसे तारी, और लाल केप्से प्रासंगिक जल लेव, सम इस पारिजान की उदारता है। हैं। तिने सरकवि की वनाई हुई इस महाराजा की प्रशंसा है, उनके आधे भी सरयता सेवियों ने किसी भी राज्ञा , की विदावली का मन नदीं किया है। एक ओर । बात है कि इन्होंने प्रायः एरमैचम कवियों का हो विशेष मान जिस से इन की साहित्यपटुता प्रकट होता है। राय