पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/८१

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सयल इ] पूर्वलंत प्ररण । है।

  • इससे अनुमनि देता हैं कि हमारे फयिनी राजा मित्रसेन के

भाईचारी में और ज झादशाह और गज़ब की सेवा में था, म त उसके दिर में "जने' का क्या फार्म था ? जनि पड़ता है कि इसी कारचा कवि औरंगजेब को नाम प्रायः सभी ठार मांसासूचक शब्द में लिखते हैं । सयललि'६ जी भी कदा- चित् राजा मित्रसेन के साथ दिल्लीपनि फी सेवा में थे और शायद स्वय' युद्ध में सम्मिलित होने के कारण इन्हें भीम से प्रारम्भ कर मभक्ति माने का उत्साई झुग 1 आपने शुद्ध पर्यों से प्रारम्भ [कया और मामः सभी पैसे पर्ब पू है। जाने पर अन्ध पूरा करने को इनकी इच्छा हो उठी। इनके फाघ्य का शीक मात्र था । कविता बनाना इनका पेशा में भी मैर न इन्होंने सिलसिलेवार काप्य ही विया । जन्न मैच आज्ञाक्ती धी तभी लिख डाल दें । इनकी कविता साधार; थी वैार में मधुसुदनदास जी की ' के कवि थे । नमूना नीचे दिया जाता है - का मुन्न पुग्ने कर दुख हरन तेहिँ कहाँ शिर नाय । कने यश चीजे चिनथ दो अन्य बनाय ॥ नृपदि हात दालछि नृपति पवि तृप तृणदि पवार अलधि अन्य सर लसरहि उदृषि के क्षय मान !! गुरु गैरविंद के चरण मनैय। जेहि प्रसाद उत्तम गति पेये । शिचनकादिक मत न पायें।नर मुझसे हि विधि यश गावैं ॥ इगफी भाषा की प्रणालीं श्री गोस्वामी तुलसीदास जी के दंग की है | ये जी के अनुयायी कवि भी हैं।