पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/९

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हिन्दी की दशा
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पूर्णाकृत प्रकरण

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-हेन्दी को इशा] पूर्णाकृत प्रकरण । द्धिसिंह भी कवियों के प्रसिद्ध आश्रयदाता थे । मकिधि भति- राम इन्हीं के यहाँ रहते थे, और मून्य तथा कर्वेन्द्र में भी इन फी प्रशंसा के छन्दू कहे हैं। यह भी उत्कृष्ट फचि और गुणग्राहक थे hहाराजा नागरीदास के विषय में यह कुछ कहना व्यर्थ हैं। इनके साहित्य और गुण वा चयन इस अध्याय में यथा मान फुछ विरत रूप से मिलेगा। महाराजा शिवा जी ने भी भूपा पैसे | सिद्ध कवि है। यत्र देकर अपनी कप्ता दिई ।। | पु' मारा जयसिंह ३ बिहारीलाल का सरदर किया था । इन मत्ाराजाओं के अतिरिक्त अन्य राजा महाराजा ने भी कधिषा फी आश्चय दिया, जिसका पर्यन इन फयियेां के साध निगा । इम में शाहजहां, मैरङ्गजेबात्मज आज़म शाह, अकबर प्रटी!, कमरुद्दीन ख ग्रादि मुसमान महाशय भी परिगणित हैं। | भाषा-साहित्य के आचार्यय भी इस काल में घस हो गये, जिन में दैन, भूपा, मतिराम, चिन्तामणि, श्रीपति, कवीन्द्र, गदा- राजा जसवन्तसिंह, सूत मिश्र, सलीन, फुलपति और सुन्न: देब पर प्रधान हैं । रावल बावित करने वाढ़ी में इस पाल के बैताल, लाल, भूप पर हरिकेश अगुआ ६, र tiया में नेवाज, ८५ र अलग मुक्ष्म माने जाते हैं। साध नै माटिया नीति ग्गीण भाषा में कही है। राय काव्य सुरति मिश्र ने री, घर एप् र सूरत से टीका की प्रग्यली फिर से चलती है। उर्दू भी फ़ारसी के ताजमै चदि हिन्दी में, कई रे , ६, १ विवारी आदि में। देव जी नेता माने सभी कुछ कहा पर भाषा फी घट अभूत पूर्व उन्नति की, जो दर्शनीय है। जैसी सेतावनी