पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/९५

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पूलं प्रकरण । विपर—नि छन्द इज़ार में हैं। इनकी रचना बद्दी वम पचे सिंत्तीकार्य है। इनकी गणना वैप झव की ४ छ में है। बाईसवें अध्याय । भूपथकाल ( १७२१ से १७५० तक) । (४२६) महाकवि भूपण त्रिपाठी । । थे महाशय कान्यकुदा पदाग्छ तिकर्यापूर जिलो कानपूरघासी फिर पिपाठी के पुत्र थे। इनका जन्म अनुमान से सचत् १६७८ ३ पुसा था । चिन्तामणि त्रिपाठी इनके ज्येष्ट अन्धु और महा कवि मतिम एव नीलकंठ छाएँ भाई हैं। इनका नाम कुछ और ही पा, परन्तु चिन्नकूट के सुकी र य ने भी भूपए की उपाधि दी, तब से इनका यही नाम प्रसिद्ध है। या । भूपी कई राजा के यहाँ गयें, परन्तु सवसे अधिक मान इनकी महाराज चाई र छत्रसाछ के यहाँ धुमा, पर इनकी इन्हीं दी मद- 'राजी का फन्न समझनी चाहिए। भूपी नै कई ६ छक्ष यूपये पक एक छंद पर पाये। ये सदैव राजा ने फी भौति मान र प्रतिष्ठा पूर्षक रुदा फिी भर अत में पुत्र प्रधान देकर प्रायः संवत् '१७७२ ३ ४ ३कुइबासी हुए। घर में इसमें इनका जन्मशाल 1चत् १६५३ माना पा, पर पॐ इन छोटे भाई जटाशंकर नीलपङ) र अनाया सय १६८ या प्रमशक्लिास' ग्रन्थ वैज्ञ में पैर पड़ा; सी जटाशंकर का ही जन्मकाल १६७८ के