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प्राचीन कविगण

में विशेष स्थान रखता है। नंद-यशोदा और गोपियों को समझाने तथा उन्हें उचित मार्ग पर लाने के हेतु ऊघो का श्रीकृष्ण द्वारा ब्रज में भिजवाया जाना ग्रंथ में वर्णित है। वर्णन उत्कृष्ट तथा सरस है । इन कवि महाशय का परिचय माधुरी पत्रिका (वर्ष खंड १, संख्या १) में दिए हुए पं० भगीरथप्रसाद दीक्षित के लेख के आधार पर दिया गया है। दीक्षितजी का कथन है कि उक्त कवि- कृत अमर-गीत का उल्लेख खोज की रिपोर्ट में है, और इस ग्रंथ की संवत् १६०५ की लिखी हुई प्रति भी प्राप्त हुई है।

उदाहरण-

आयसु दीन्हों सखा सुजानहिं।

स्पंदन चडौ, सिधारौ ब्रज कौ सिद्धि रावरेया थानहिं।
कैसी हैं जसुदा जननी जिनि पालि कियो परबीन ;
मोहि थछत अब होति होहिगी पर-पृतन्ह श्राधीन।
गहियो पायँ नंद बाबा के कहियो यहै संदेसौ;
जो तुम कियो महाकृत हमसों गुनि न सकत गुन सेसौ ।
समाधान कीजेहू गोपिन कौं, दीजेहु निर्मल ज्ञान ;
कहियो जोग-जुगति सो 'प्रागनि' त्रिपुटी संयम ध्यान ।

नाम-(२०४/८०) रसिकलाल उपनाम रामदास माथुर, तहसील रामगढ़, राज्य अलवर।

जन्म-काल-सं. १८७६।
रचना-काल-सं० १६१०।
मृत्यु-काल-सं० १६५७।
ग्रंथ-गीतामृत-धारा।

विवरण-आप रूढ़मलजी के पुत्र थे । वेदांतसार नामक आपका एक दूसरा ग्रंथ थमुद्रित रूप में श्रापके वंशज लाला भैरोलाल तथा गोपालसहाय माथुर, अलवर के पास मौजूद है, ऐसा कहा जाता है।