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मिश्रबंधु

प्राचीन कविगण जन्म-काल---सं० १८६६ । रचना-काल-सं० १६१६ । मृत्यु-काल-सं० १६७२ । ग्रंथ--(१) नीति-मंजरी, (२) गो-माहात्म्य, (३) भतृहरि- चरित्र, (४) श्रीविश्वनाथ-पताका, (५) कलियुग-पचीसी, (६) सुदामा-चरित्र, (७) सत्योपाख्यान (छंदोबद्ध भापानुवाद) और स्फुट कविताएँ। विवरण---श्राप सनाघ्य ब्राह्मण थे। आपके पिता का नाम पं० रामलाल व्यास तथा पितामह का पं० लहोरेलालजी व्यास था। इनके पूर्वजों का श्रादिम निवास- स्थान ब्रजमंडल था, किंतु कालांतर में वह महोबा ज़िला हमीरपुर में प्राकर बस गए थे। तदनंतर छतरपूर-राज्य में आए । पांढित्य तथा कुलीनता की दृष्टि से व्यासजी का घराना प्रतिष्टिंत है। श्राप जन्मतः एक श्राशुकवि थे, और 'बुंदेलखंढी भाषा पर श्रापका अच्छा अधिकार था । आपकी बनाई हुई बहुत-सी काव्य-पंनियाँ सर्व-साधारण में, लोकोक्ति की भाँति, प्रचलित हैं । बीसवीं शताब्दी के बुंदेलखंढी कवियों में व्यासजी का आसन श्रेष्ठ है । यह महाशय छत्तरपुराधीश श्रीमान् महाराजा विश्वनाथसिंहजू देव के आश्रित

कवि थे। हर्प का विषय है,

इनकी कविता तथा ग्रंथों का संग्रह पं० रामनारायण शर्मा के संपादकत्व में गंगाधर-ग्रंथावली के नाम से श्रीसनाढय-ग्रंथमाला, कालपी से शीघ्र ही प्रकाशित होनेवाला है। उदाहरण- मत्त मतंगन की गति सों गजगामिनि नाम मिल्यो सुन्बदानी : ज्यों द्विज गंग' तनै नहिं ताहि, मराल हँसी मरि हैं मन मानी। यो लचिहै कच-भारन लंक, न मानत संक निसंक दिखानी; मंद चले किन चंद्रमुखी, पग लाखन की अँखियाँ उरमानी।