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प्राचीन कविगण


उदाहरण-

प्रचंड चंड मुंढ खंढ रूंढ मुंढ कै धरा,
हुँकार घोर शोर ते ढरे मरे निशाचरा;
अनंत वीर धीर्य कीर्ति लोक कोक को धरौं,
दुरंत द्वंद खंढिए विलंब अंब क्यों करौ ।
अपार दु:ख दाह-दाह शुद्ध बुद्धि कीजिए,
सदैव सुख देव-देय शत्रु-शीश मीजिए;
अधीन मातु जान हीन दीन की व्यथा हरौ,
दुरंत द्वंद खंडिए विलंब अंब क्यों करौ ।

नाम--- (२१/इ१श्र७) (राजा) पृथ्वीसिंह (जी), कृष्णगढ़ । परिचय--इनका पहला नाम स्योपानसिंह था । मोहकमसिंहजी के मरने पर यह उनके उत्तराधिकारी हुए, तथा पृथ्वीसिंह नाम पड़ा। यह वैष्णव तथा व्यवहार- कुशल राजा थे। कभी-कभी कविता भी करते थे। रचनाकाल-सं० १६२० के लगभग । नाम-~-( २१/७५८ ) हंसराज (जी), कृपणगढ़ । परिचय-वृंदजी के वंशज तथा किशनगढ़ के दावारी कवि थे। रचना-काल-सं० १६२० के लगभग। उदाहरण- नूर बढ़ श्रानन पै थाज चढ़यो सुरन को, परम मजानि को उदंगल ह मिटि गौ काॅंपे उर चोरन के धादवी धधक रहे, नीति धन प्रीति सों घनीति-धीज हटिगौ पाटके विराजत श्रीपृथ्वीसिंह भूपति के, तपन प्रताप लोक तामस उछटि गौ;