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मिश्रबंधु-विनोद


धाक परे देशन औ' हाक परे शत्रुन पै,
धौकल धरा को सब एकै साथ मिटि गौ।

नाम-(२१३/५१) ज्ञानअली।
समय-सं० १६२२ ।
ग्रंथ-सियवरकेलिपदावली । (पं० त्रै० रि०)
नाम-(२१४/१२ ) ( महाराजकुमार ) नर्मदेश्वरप्रसाद-

सिंहजी।

आपका जन्म सं० १८६६ में, जगदीशपुर शाहाबाद में हुआ था। आपके पिता का नाम तुलसीप्रसादसिंह था । आप फ़ारसी- संस्कृतादि भापायों के विद्वान् तथा हिंदी-भाषा के कवि थे। श्रापके पूर्वज उज्जैन से श्राकर यहाँ बसे थे। ये लोग प्रभार क्षत्रिय-वंश के थे, परंतु उज्जैन से आए हुए होने के कारण इनके वंशधर उज्जैन नाम से विख्यात हुए। ग़दर के बाद आपने जगदीशपुर का रहना छोड़कर वहाँ से दक्षिण तीन मील दूर दिलीपपुर-नामक ग्राम में अपना निवास स्थान बनवाया। आप प्रायः डुमराँव जाया करते थे। यहाँ से सं० १६६३ में आपको पक्षाघात रोग हो गया, और इसके बाद इस रोग के कारण आप साहित्य-सेवा से वंचित रहे । आपने 'शिवाशिव-शतक',श्र 'गार-दर्पण', 'पंच-रत' और 'धर्म- प्रदर्शिनी -नामक चार ग्रंथों की रचना की। 'शिवाशिव-शतक' सं० १६३२ की माघ-शुक्ला पंचसी को वना। यह भारत-जीवन-प्रेस में छपा है । इसमें नामानुसार १०० कवित्त-सवैयों में शिव की स्तुति है। श्रृंगार-दर्पण नख-शिख का अंथ है। इसकी रचना शिवाशिव- शतक के एक वर्ष उपरांत हुई, और यह ग्रंथ सेंट्रल-प्रेस, दीनापुर में प्रकाशित हुआ । पंचरत्न अभी तक अप्रकाशित है । यह सं० १६४२ के पूर्व का होगा। इसका होना इनके वंशधर दुर्गाप्रसादसिंहजी द्वारा विदित हुआ है। जीवनी भी इन्हीं के द्वारा प्रात हुई है। इसमें