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मिश्रबंधु

मिश्रबंधु-विनोद t 7 ? अड़तीसवाँ अध्याय आदि से संवत् १९४४ पर्यंत के शेष कविगण मिश्रबंधु-विनोद के द्वितीय संस्करण के संबंध में केवल थोड़ा- अंहुत परिवर्तन ग्रंथ में नहीं हुआ है, वरन् फिर से पूरी जाँच और "ज करने से कवियों तथा ग्रंथों की संख्या पहले से प्रायः ड्योढ़ी हो गई दूसरे भाग तक प्रथम संस्करण में १३२१ कविथे, तथा अब १६४० हो गए हैं। तीसरे भाग में भी ऐसी ही वृद्धि हुई है, और चौथे में संख्या बहुत अधिक बढ़ गई है। दूसरे संस्करण में आदि से संवत् १४५ पर्यंत कवियों के कथन प्रथम तीन भागों में हैं, तथा इस चौथे भाग में ११४५ से अब तक के रचयिताओं के विवरण हैं। प्रथम 'तीन खंडों के बहुत-से ऐसे कवि हैं, जो उन भागों के द्वितीय संस्करण

  • समय हमें मालूम न थे, किंतु अव ज्ञात हो गए हैं । उनका वर्णन

हाँ करके आगे बढ़ना उचित समझ पड़ता है। उपर्युक्त खंडों में हले का तीसरा संस्करण भी हो गया है, तथा दूसरे और तीसरे के 'अभी दूसरे ही संस्करण हुए हैं । अब न जाने कितने दिनों में इनके और संस्करण निकलें । इसलिये जो बृहत् मसाला हम लोगों को झात हो चुका है, उसको अपने ही पास पड़ा न रखकर हम उसे वहीं प्रकाशित कर देना उचित समझते हैं । इस अध्याय के रचयिता- गरण बहुत प्रसिद्ध नहीं हैं, किंतु वर्णन-पूर्णता के लिये उनका लिखा जाना आवश्यक था ही, तथा इनमें से कितनों ही ने कई-कई बृथ