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मिश्रबंधु
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प्राचीन कविगण
मृत्यु-काल-सं० १६७२ ।
 
ग्रंथ-(१) ज्ञान-विनोद ( ज्ञान-वाटिका ), (२) नाटक, प्रहसन आदि।
 
विवरण-आप कान्यकुब्ज ब्राह्मण कन्नौज के मिश्र थे । कहा जाता है, आप असाधारण साहसी पुरुष थे। आपने १८ वर्ष की अवस्था में लाठी से एक शेर मारा था। आप खड़ी बोली में भी कविता करते थे, किंतु कविता के योग्य आप ब्रजभाष को ही मानते थे। पं० शिवरत्न मिश्रजी, भागलपुर का कथन है कि इन कवि महाशय ने अपनी सारी कविता टिकारी-ग्रामवासी भगलू तिवारी के नाम पर की है, और आपने इसी कविता-संग्रह का नाम 'भगल-कृत ज्ञान-विनोद' रक्खा है। उक्त ग्रंथ हमें मिश्रजी से प्रात हुआ है, और उसकी भूमिका में यह लिखा हुआ है-
 
“एक विप्र भगलू तिवारी, टिकारी-ग्राम के जो थोड़ी कविता जानते थे, हमारे संगी हुए। वो वही कवित्व बनाने की श्रद्धा हमारे. चित्त में उत्पन्न किए...। उन्हीं के नाम से काव्य रची गई..."
 
उदाहरण-
 

काया बीच में जाकर बैठा देखत सकल तमासा है;
देखो वह है अजब खिलाड़ी समझ में नहिं आता है|
पंच बयारि लगे मन डोले तिहूँ लोक भरमाता है;
जहँ-जहँ मनुश्रा खेल करत है, तहॅं-तहँ खेल खिलाता है।
चित माया दोउ नाच नचावत कुल परिवार बनाता है;
प्रसे रहत चहुँ ओर से मन को ता बिच श्राप न आता है|
है वह सदा सबन तें न्यारा छाया कर ‘दरसाता है;
मन स्थिर करके देखहु 'भगलू' प्रापै आप लखाता है।

नाम-( २२/०७४ ) मोहनलाल चतुर्वेदी, मैनपुरो ।
 
जन्म-काल-सं० १६०८।