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मिश्रबंधु-विनोद

चंपक बरन मन हरन सुनीसन के
    जुरी प्रानि आनन पै दुति है दिगंत की,
'बेनी द्विज' कुसुम कली-सी खिली राजै वर
    अंग अरुनाई छाई हिय हुलसंत की ;
श्रीफल अनार -से अमोल कुच सोहैं गोल
    नैनन लही है कंज छवि बिलसंत की,
चाहिए बिहारी लीजै नैनन निहारी
    वृषभान की दुलारी फुलवारी है बसत की।
मान भरे सुंदर सुजान पान सान भरे
    सोभा के निधान खान सुधर अनाली के,
तेज-भरे तरुन तरंगी अगी दासन के
    दुष्टव सँधारिदे को मानिंद दुनाली के ;
रोब भरे राजत महान ओज मौज भरे
    'वेनी द्विज' कमल कुलीन कंज डाली के,
अमित खुशाली भरे आली ज्योति जाली भरे
    लाली भरे ललित ललाम नैन काली के ।
जैसी प्रीति स्वाती सों पपीहा के ठनी है जीव,
    वैसी ही हमारी प्रीति पीउ सों ठनी रहै |
जैसी चाह चंद की चकोर के चुभी है चित्त,
    ताहू सों दुचंद मेरी आरजू धनी रहै ।
बार-बार गौरी सो बिनै के यह माँगति हौं,
    'बेनी द्विज' दीठि में धरोई मों धनी रहै,
चाहे जौन बाल के परै वो प्रेम-जाल तऊ,
    लाल उर लागिबे की लालसा बनी रहै।

नाम-(२३६/१३ ) बहादुरसिंह, बीदासर, रियासत बीकानेर ।
 
जन्म-काल-सं०१६११ ।