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मिश्रबंधु-विनोद

नील-मनि-खंभ तापै केहरि की कटि
तापै जमूना तरंग और रुचि अति मोहै मन ।
मरकत पत्र पै बसीकरन मंत्र तापै
संप से निकारि कै विराजै नाग पंचफन ;
तापै अंध-विंच तापै शुफ चुग खंज तापै
धनु ऐस सर तापै अर्ध ससि तापै धन ।

नाम-( २४०/७४ ) लक्ष्मीलाल मिश्र वी० ए०, वकील,मैनपुरी।

जन्म-काल-सं० १६१२।

मृत्यु-काल-सं० १६७०।

ग्रंथ-स्फुट कविता।

विवरण-आप मैनपुरी-निवासी माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मण थे।आप अपने ज़िले के प्रसिद्ध वकील थे। वकालत करने के पहले कुछ काल पर्यंत यह सेंट जॉन्स-कॉलेज, आगरा में गणित के प्रोफेसर(अध्यापक) थे। पं०उमरावसिंहजी पांडेय मंत्री चतुर्वेद-पुस्तकालय, मैनपुरी का कथन है कि उन्हें इनके कविता करने के विषय में इनके पुत्र पं० व्रजनाथजी बी० ए० द्वारा मालूम हुआ है, और नीचे दिए हुए दोहे भी पं० व्रजनाथजी से ही उन्हें प्राप्त हुए हैं।

उदाहरण-

छवी कृष्ण दर्पण निरखि राधा भई अधीर;
कठिन मान अरु मोह की गही दि दग पीर ।
मोह गयो मिलनोगयो, यों कहि चले मुरारि|
राधे हिए उराहनो लग्यो चबुक अनुहारि।
सहमी-सी सो रहि गई, बंधी प्रेम-रस ढोरि|
कहुँ ठनगन कहुँ रूसिबो, कहुँ मूलता मरोरि ।