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मिश्रबंधु

२ मिश्रबंधु-विनोद बनाए हैं। इनमें से मदनमोहन, जदुनाथ भाट, कनकपल, जानकीराम, गंगाधर व्यास, जीवा भक्त तथा बहुत-से अन्य महाशय सुकवि भी हैं । जी भक्त ने बहुत खरा ज्ञान कहा है । इस अध्याय में बहुत-से महाराष्ट्र देशवाले हिंदी-कवि भी हैं । कुल मिलाकर यह भाग बुरा नहीं है। इसमें कवियों के नंबर वहीं दिए गए हैं, जो अपने उचित स्थान पर उन्हें मिलते । २४ नाथ कवियों के विवरण तृपिटकाचार्य राहुल सांकृतायन-नामक लेखक महाशय ने १९८९ की गंगा पत्रिका में निकाला है, जिसके आधार पर उनके कथन यहाँ किए गए हैं । इनमें से बहुतेरे आठवीं, नवीं, दसवीं श्रादि परम प्राचीन शताब्दियों के हिंदी कवि कहे गए हैं। उनके ग्रंथ बहुधा तंजौर में. कहे जाते हैं। कवियों की प्राचीनता बहुत महत्ता-युक्त है, और दृढ़ आधारों पर अवलंबित जान पड़ती है, किंतु उनके पूरे विवरण सांकृतायन महाशय ने नहीं दिए हैं । जब इस विषय में अधिक ज्ञान होगा, तब फिर कुछ कहा जायगा । सांकृतायन महाशय की खोजें कितनी महत्ता-पूर्ण हैं, सो प्रकट ही है। आशा है, आप अपने कथनों के पूरे हवाले देकर शीघ्र समाज को बाधित करेंगे । राहुल महाशय को हमने पत्र लिखा था। उसके उत्तर में जो पन उन्होंने हमें लिखा है, उसकी नकल नीचे दी जाती है, जिससे समय जानने में बहुत सहायता मिलेगी। कवियों के नंबर डालने में भी एक नवीन प्रश्न उपस्थित है प्रथम संस्करण में नंबर सीधे-सीधे पड़ते गए, किंतु द्वितीय संस्करण के समय यह सोचा गया कि लोगों ने जो हवाले दिए हैं, वे नवीन नंबर डालने से श्रमात्मक हो जायेंगे । अतएव प्रथम तीन खंडों में नंबर पुराने ही डाले गए, और जिन नंबरों के बीच जाँच से नए कवि मिले, उनके नंबर बटे से कर दिए गए। जैसे नंबर १५६६ तथा । ।