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मिश्रबंधु
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मिश्रबंधु-विनोद


रहने लगे थे। यह उर्दू, हिंदी तथा संस्कृत के अच्छे विद्वान थे।ऊपर दिए हुए आठ प्रकाशित ग्रंथों के अतिरिक्त इन्होंने लावनी,ख्याल इत्यादि हजारों की संख्या में बना डाले हैं। इनकी रचनाओं के मुख्य विषय देशोपकार, समाज-सुधार आदि रहा करते थे। नीतितथा शिक्षाप्रद बातों का ही श्रापके काव्य में विशेषतया उल्लेख है।ब्रजभाषा से आपको विशेष प्रेम था, और इसी भाषा में आपकी रचनाएँ हैं। यह महाशय एक अच्छे कवि होने के अतिरिक्त प्रसिद्ध वैद्य भी थे। इस समय थापके पुत्र करीमाखाॅंजी ज़िला दमोह में रहते हैं । [महाशय लक्ष्मीप्रसादजी मिस्त्री, हटा(दमोह) सेज्ञात]।
 
उदाहरण-
 

दाता नहि रंक होत दान के दिए तें कयौं,
     कूकर ना वृष होत गंग के नहाए तैं|
अस्त्र के गहे तें कूर शूर नहिं होय जात,
     बगुला ना हंस होत मोती के चुगाए तैं।
पोथी पाय मूर्ख जन पंडित ह जात नहीं,
     तपी नहीं होत भस्म अंग के रमाए तैं।
खून पिएँ स्यार नहिं सिंह होत हाजीअली,
     तीतुर के जाए बाज होत न सिखाए तैं ।

नाम-( २४३६) कालिकाप्रसाद चौबे, कटनी।
 
जन्म-काल--सं० १६१३।
 
कविता-काल-सं० १९४० ।
 
मृत्यु-काल-सं० १९६२ ।
 
ग्रंथ-(१) राम-चरित,(२) पुलिस-ऐक्ट, (३) स्फुट रचनाएँ।
 
विवरण- --आपका जन्म उन्नाव-ज़िले के बीघापुर-ग्राम में हुआ था। आपके पिता पं० चैनसुखरामजी चौबे ब्रिटिश-सेना में सूबेदार