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मिश्रबंधु
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मिश्रबंधु-विनोद


उदाहरण-
 

कियौ जो अराम पै लियो न राम-राम नाम,
     होय वस बाम के निकाम कामताई है;
जो पै ग्राम धाम में बिताए बहु याम धन-
     श्याम देख धाम भवतापन नशाई है ।
प्रेम खाम थाम मन होय विश्राम धाम,
     रसिक अकाम होत संत मनभाई है;
कामना सनाई तो पै काम ना मनाई पै,
     कामना मनाई तो पै काम ना मनाई जो है।

नाम-(२४४/१६ ) जयगोविंद, ग्राम वहोरा, जिला पूर्निया(बिहार-प्रांत)।
 
जन्म-काल-सं० १६१० के लगभग ।
 
रचना-काल-सं० १६४० ।
 
मृत्यु-काल-सं० १९७० ।
 
ग्रंथ-(१) अलंकार-श्राझार, (२) कविता-कौमुदी (यमुद्रित)।
 
विवरण-आप श्रीरामप्रसादजी के पुत्र थे ।जाति के महा-भट्ट थे। कविता प्रायः बचपन ही से किया करते थे। यह महाशय पूर्निया-ज़िलांतर्गत श्रीनगर-राज्य के अधिकारी श्रीकुँवर कालिकानंदसिंहजी के आश्रित कवि थे [श्रीरामगोविंदसिंह वर्मा,मदारीचक (बिहार) के द्वारा ज्ञात ] ।
 
उदाहरण-
 

चलनो सुपथ परमारथ सें रत मन,
    पान गंगा-तोय अरु तिनसें नहावनो;
रूप-राशि राधा-कृष्ण पद से अचल भक्ति,
    चंदन सुगंध शुचि अंग में लगावनो ।