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मिश्रबंधु
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मिश्रबंधु-विनोद


उदाहरण-
 

तेरे ही वियोग श्यामताई मन छाय रही,
     भयो है मलीन कहूँ नेक हू सुगोरो ना;
कीनी श्राप प्रीत अवै सोई तो दिखात पीत,
     फूली फुलवारी पै सनेह कहूँ जोरो ना।
'लाख कवि' सुजन सपूतन की रीत एही,
     करके सनेह सील फेर कहूँ तोरो ना;
 पाचात पराग गुन गावत तुम्हारो देख,
     श्रावत मलिंद अरविंद मुख मोरो ना।

नाम-(२१८)वचऊ चौवे ( रसीले), काशो।
 
ग्रंथ-ऊधो-उपदेश ।
 
कविता-काल-सं० १६४१ के पूर्व ।
 
विवरण-साधारण श्रेणी ।
 
नाम-(२४/०८८) कालीप्रसाद भट्ट, उरई ।
 
ग्रंथ-रसिक-विनोद, द्वि० ० रि० ।
 
विवरण-सं० १६६६ में मृत्यु हुई । पिता का नाम छविनाथ भटृ था ।
 
नाम-( २४६२ ) जीवामत, भावनगर, काठियावाड़।
 
जन्म-काल-सं० १६१६ ।
 
ग्रंथ-स्फुट कविताएँ।
 
विवरण-आप गोहिल राजपूत काका भाई के पुत्र थे। भावनगर के महाराज श्रीजसवंतसिंहजी की रानी श्रीअमजीवा साहवा के श्राश्रय में कुछ काल पर्यंत यह महाशय थे। उक्त रानी साहबा के स्वर्गवासी होने पर यह परमहंस बनकर नर्मदा-तट के प्रदेश में रहने लगे, और इसी स्थिति में कविता करने लगे। कविता में प्रथम यह अपना नाम'जीवा' रखते थे, और पश्चात् 'जीवनराम' रखने लगे।