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मिश्रबंधु


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मिश्नबंधु-विनोद


में, पं. अंबिकादत्तजी व्यास की अभिभावकता में रहकर, सस्कृत-साहित्य का अध्ययन करके वहीं से काव्यतीर्थ की उपाधि प्रात की।आपका संबंध कलकत्ते के प्रसिद्ध 'जीवानंद-विद्यासागर'-प्रेस से,संस्कृत-ग्रं थों के संशोधक के नाते, बहुत काल-पर्यंत रहा । यह संस्कृत के विद्वान होने के अतिरिक हिंदी के भी कवि थे । यदा-कदा आपकी रचनाएँ 'मनोहर' अथवा 'मिश्र' उपनाम से अंकित रहा करती थीं।कहा जाता है, 'पथिक-दूत' नामक संस्कृत-काव्य-ग्रंथौं इन्होंने रचा,किंतु इनकी यह कृत्ति अब उपलब्ध नहीं है । हमें यह कवि महाशय पं० शिवशंकर वाजपेयी, रायपुर के द्वारा प्राप्त हुए हैं । और, उन्हीं के पास इनकी स्फुट कविता का जो संग्रह है, उसी से नीचे दिया हुआ उदाहरण लिया गया है।
 
उदाहरण-
 

युगल किशोर नैन-कोर की मरोरन में
   सान प्रान वारा करैं रूप अभिमान की;
दंपति इशारा बड़े प्रेम से निहारा करैं,
   कुंज भूमि झारा करें उभय मिलान की।
मृगमद, केसर, कपूर, केवड़े को नीर,
   वीथिन दवारा करैं रौसै मल्लिकान की।

नाम-(२४६४/अ) कामताप्रसाद कायस्थ, बुंदेलखंडो, चिर-गाँव, झाँसी।
 
ग्रंथ-(१) रामाष्टक, (२) संक्षिप्त पुस्वकें।
 
जन्म-काल-सं० १६१७ ।
 
विवरण- आप अपनी धुन के इतने पक्के हैं कि देवता-संबंधी जो पुस्तके आपने पहले बनाई थीं, उनको अपनी स्त्री-पुत्रादि की मृत्यु पर उन्हीं देवतों की दया का प्रभाव मानकर फूंक दिया ।