मिश्रबंधू-विनोद १२८
विवरण-श्रीयुत गोविंदरामचंद्र चांदेजी का कथन है कि स्वर्गीय श्रीजगन्मोहन वर्माजी ने अपने'शब्द-शास्र'नामक मे लेख में इन्हें एक 'वंगदेशीय हिंदी-कवि बतलाया हैं ।वर्माजी का यह लेख हमारे देखने में नहीं आया है, किंतु वह'माधुरी'पत्रिका की किसी संख्या में निकल चुका है,ऐसा कहा जाता है ।
नास-(३४२४) सौन।
ग्रंथ-शक्ति-चिंतामणि (पृष्ठ ३४)।
नाम-(३४२६) मधुसूदन वल्लभ ।
ग्रंथ-(१)सेवा-प्रणालिका-ग्रहण-निर्णय,(२) स्फुट पद।
विवरण-राधावल्लभीय संप्रदाय ।
नाम-(३४२६) मनराखनलाल वाजपेयी 'राखन', ग्राम
पाली, जिला हरदोई।
कविता-काल-आऋत ।
ग्रंथ-(१) सुदामा-चरित्र, (२) वामन-चरित्र,(३)विद्या-
विलास, (४) पक्षी-विलास ।
विवरण-संसवतः यह महाशय कवि हरिनाथजी के समकालीन थे। [पं० रामाज्ञा द्विवेदी के द्वारा ज्ञात ] । उदाहरण----
देत किकाहैं देह दिग्गजन दाहैं सीता,
सोक की दवा हैं करें छाहैं भक्ति अंग की;
सारदा सराहें मिलै बल की न थाहैं देव,
दुम की लता हैं सुषमा-सी साधु संग की।
'राखन' सुकवि कहै हिये सों निवारो वेगि,
मेरे मन आहैं चोप चाहैं रन रंग की;