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मिश्रबंधु
          अज्ञात काल              १३९

गिरिन को ढाहैं, सातौ सिंधु अवगाहैं, तोरें

  अरिन की आहैं ब्रज बाहैं बजरंग की।

नाम-(३४२७) मनिराम ।

ग्रंथ-(1)गोप-पचोसी, (२) रस-रहस्य की टीका, (३) बलभद्र कृत 'नख-शिख की टीका। (३) बलभद्र-कृत 'नख-शिख' की टीका ।

नाम--(३४२८) महावीरदास ।

ग्रंथ---छंद-रामायण ।

नाम--(३४२६) महासिंधु ।

ग्रंथ-छंद-शृंगार (पिंगल-ग्रंथ)।

विवरण-श्राप मारवाड़ के निवासी थे।

नाम--( ३४३० ) महिरामनजी उर्फ सागर, राजकोट, काठियावाड़।

ग्रंथ----प्रवीण-सागर ।

विवरण-आपके उक्त बृहत् ग्रंथ में ८४ अध्याय हैं । आपका शरीर-पात हो जाने पर इस ग्रंथ का कुछ अंश श्रीगोविंद गिल्लाभाई ने बनाकर पूर्ण किया।

उदाहरण---

कटि फेट छोरन में भृकुटी मरोरन में,

 शीश पेंच तोरन में अति उरझाय के;

मंद-मंद हासन में, . वारुनी विलासन में,

श्रानन उजासन में चकचौंध चाय के।

मोती-मनि मालन में सोसनी दुसालन में,

चिकुरी के तालन में चेटक लगाय के;

प्रेम बान दे गयो न जानिए कितै गयो,

सुपंथी मन लै गयो झरोखे ग लाय के ।