पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४
१४
मिश्रबंधु

मिशबंधु-विनोद हुई। यह सस्क्य कंबुं तिब्बत में सस्क्य मठ के पाँच अधिपतियों (1091-1279 A. D.) की ग्रंथावली है । यही ची मंगोल जातीय चीन-सम्राटों के गुरु हुए । च, छ, ज नंबर की पोथियाँ तीसरे महंत- कीर्तिध्वज ( जन्म ११७१, मृत्यु १२१५) की कृतियाँ हैं । इन्हीं लोगों ने अधिकांश लिद्धों की वाणियों का अनुवाद राज करवाया था। उक्त ग्रंथ और रिन्पो-छेइ-व्युह्म-खुड्स-ल्त- वइ गतम् पृष्ठ ६६, तथा चतुराशीनिसिद्धप्रवृत्ति, स्तन्–ग्युर ८६१ (नर-यङ् छापे) के पृष्ठ ३६ में भी, दारिकया और डेंगिपा का (जो पहले बोड़ीसा के राजा और मंत्री थे) लूहिपा का शिष्य होना वर्णित है। महाराज देवाल (८०६-४६ ई० ) के समय में इन सिद्ध कवियों के होने का उल्लेख है--- विरूप (३) चतुराशीतिसिद्धवृत्ति-स्तन-गुर-८६१ P४० गोरक्ष (१६) करहपा (१७) गुरु जालंधरपा ४६ " " २० ख भूक (४१) " " > " 13 घंटापा (५२) लूहिपा और शवरपा का समकालीन होना तथा उनका धर्मपाल के समय होना असंदिग्ध है। इसके लिये भोट भाषा के कितने ही ग्रंथों से प्रमाण दिया जा सकता है । पर मैंने सस्क्य क्यं बुंश से प्रमाण उद्धत त किया है, जो बहुत ही प्रामाणिक ग्रंथ-संग्रह है। यदि उपयोगी समझे, तो वंश-वृक्ष को छाप देंगे, किंतु मुफ्त में बहुत ही सावधानी रखनी होगी। कलकत्ता-विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दिनेशचंद्र सेन ने 'वंग- साहित्य-परिचय' ग्रंथ लिखा है, जो करीव १६१४ ई० को. छपा