मिश्रबंधू-विनोद| १३४
ग्रंथ--भारतीय शिष्टाचार ।
नाम--(३४५६) विहारीलाल लाला ।
ग्रंथ--कायस्थ-कुल-चंद्रिका,[प्र० त्रै० रि०] ।
विवरण-लौंडी राज्य छतरपुरवासी।
नाम-(३४५७) शिवदिनकेशरी,पैठन,महाराष्ट्र-देश ।
ग्रंथ---स्फुट कविता।
विवरण~~-आप नाथ-पंथ के परंपरा अनुयायी तथा सं० १२८६ वाले महात्मा ज्ञानेश्वर की शिष्य परंपरा में से थे। 'नाथ-पंथ का वाना यारों सब दुनिया से न्यारा है'यह प्रसिद्ध पद श्राप ही का बनाया हुआ है। आपकी कविता मधुर प्रभावोत्पादक तथा उपदेशात्मक हुआ करती थी। केसरीनाथ आपके गुरु थे।
उदाहरण----
(१) किन बैरिन ने बैर कियो री; साजन कूँ बैराग दियो री।
पेहरी मुद्रा भस्म चढ़ायो ; कान मों कुंडल अलख जगायो। खाँदे जो पावरी हाथ मों भोली ; बिच निर्गुन माला सैली। शिवदिन मनोहर केसरि प्यारा ; अलख-अलख सब जोति उजारा ।
(२)
हम फकीर जन्म के उदासी अहैं निरंजन बासी। सत्त कि भिच्छा दे मेरी माई मन आटा भरपूर ; बार-बार हम नहिं आने के हरदप हार खुसी। सोना-रूपा धेला-पैसा ो कुछ हम ना चाहें; प्रेम कि भिच्छा ला मेरी माई हम पंछी परदेसी।