पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद ४.pdf/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४८
१४८
मिश्रबंधु
             मिश्रबंधू-विनोद            १४२

ही विशेष श्रम करके आगे के संस्करणों में उन्हें अधिक चमत्कार प्रदान करें । संसार बड़ा सौंदर्योपासक है। बिना गुण के यह किसी का माल नहीं खरीदता । मित्रों की झूठी प्रशंसा तथा शत्रुओं की ईष्या-पूर्ण निंदा का प्रभाव कुछ ही. काल रह सकता है, किंतु अत में भवभूति की 'कालो ह्मयरवघिविंपुला च पृथ्वी'- वाली कहावत चरितार्थ हो ही जाती है। आजकल दो-चार स्थानों पर प्रशंसा और निंदा के बैने-से बटते हैं । आप मुझे पुरस्कार दिला दीजिए और मैं आपको दिला दूँ । “मन तुरा काज़ी वु गोयम तो मरा हाजी वुगो । ऐसी कायवाहियों से जो ख्याति मिलेगी,वह बहुत ही क्षणिक होगी । समय पर गुण ही काम आवेंगे। ऐसी बातें साहित्य-सेवा न होकर घृणित व्यापार-मात्र हैं। प्रयोजन केवल इतना है कि शुद्ध साहित्य-सेवा और चमत्कृत ग्रंथों का अस्तित्व ही समय पर लेखकों तथा हिंदी-साहित्य की गरिमा का कारण होगा, इतर कोई युक्ति काम न आवेगी।

हमारे हिंदी-साहित्य को महाराजों, स्त्रियों, भक्तों आदि से सदैव सहायता मिलती रही है। अब सौभाग्य-वश समय की प्रगति कुछ ऐसी हो चली है कि बहुतेरे लेखकगण भी स्वतंत्रता-पूर्वक समाज के ही सहारे निर्वाह कर लेते हैं, और उन्हें महाराजों आदि का मुँह ताकना नहीं पड़ता । यही कारण है कि अब साहित्य को अपना सारा समय देनेवाले सज्जनो की संख्या में संतोष-जनक वृद्धि हो रही है। इस विषय में प्रेस की सहायता तथा पत्रों की महिमा से बड़ा लाभ हुआ है । इनके द्वारा उत्कृष्ट पत्रकारों, व्याख्याताओं आदि का समाज पर भारी प्रभाव पड़ता है। फिर भी हमारे राजे-महाराजे अब भी उदारता-पूर्वक अपने प्राचीन उदार भावों से काम लेकर कवियों का मान तथा काव्य-रचना इन दोनो बातों में पूर्ववत् संलग्न हैं।(एच-एच् ) महाराजा रामसिंहजी