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मिश्रबंधु
        पूर्व नूतन                १४३

(सीतामऊ-नरेश) इस काल के सुकवि हैं। इनके अतिरिक्त कई तालुकदारों आदि का भी वर्णन ग्रंथ में काव्य-रचना के संबंध में मिलेगा । भाई परमानंद आजकल के गद्य-लेखक और महापुरुष हैं, जो हिंदी पर भी कृपा करते हैं । मुसलमानों में इस काल अज-मेरीजी एक परमोत्कृष्ट आशुकवि हैं। और भी कई मुसलमान लेखकों के नाम ग्रंथ में मिलेंगे। इन लोगों की हिंदी रचना प्रायः वैले ही भावों से युक्त है, जैसी कि हिंदू-कवियों की। काव्य पढ़ने में यह पता नहीं लगता कि हस किसी विधर्मी की. रचना देख रहे हैं। मुसलमानों ने यहाँ तक विचार लिखे हैं कि 'गुन को न पूछे कोई औगुन की बात पूछे कहा भयो दई कलिजुग यों खरानो है, पोथी औ पुरान ज्ञान ठट्ठन में डारि देत चुगल-चवाइन को मान ठहरानो है।' यहाँ कुरान-पुरान दोनो का समान मान है । स्त्री-कवियों में इस काल बाधेली विषाणुप्रसाद कुँवरिजी (१९४६ ), भोगवतीदेवी (१९४८), कनकलता(१९५० ), चंद्रकलाबाई (१९५०), हेमंतकुमारी चौधरी ( १९५० ), बुंदेला-बाला (१९५२), गोप्यदेवी ( १९५४ ),भाग्यवतीदेवी(१९५६), ज्वालादेवी ( १९६०), इदुबाला ( १९६०),गोपालदेवी (१९६०) आदि के नाम आते हैं। इस नूतन परिपाटी-काल के पहले और पीछे भी कई स्त्री-कवि हुई हैं । उपर्युक्ल स्त्री-कवियों में कई उत्कृष्ट रचना भी करती थीं। इस काल बिहारी-वंशी अमरकृष्ण चौवे ( १९५९ ), भी कवियों में मिलते हैं तथा दतिया में पद्माकर-वंशी गौरीशंकर गुरु (१९५०) कवि महाशय हैं।

भक्तों में इस काल अयोध्यानाथ सरयूपारीण(सं० १९४६), हित प्रीतमदास (१९४६), जानकीशरण (१९५७) तथा सरयूप्रसाद जैसवाल (१९५०) के नाम पाते हैं। इनकी