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मिश्रबंधु

शेष कविगण है। उसमें गोपीचंद भरथरी पर लिखी पुरानी गीतों का संग्रह भी है। प्रोफेसर महाशय ने पृष्ठ २८ पर लिखा है-लक्ष्मणदास-कृत हिंदी गाने वंगीय राजार गुरु जलंधर योगी, ताहार ( राजा की) माता मैनावती, तदीय ( राजमाता के) गुरु गोरक्षनाथ प्रभृति बंगीय गीतोल्लिखित चरित्रवर्गेर प्राय समस्तेर उल्लेख आछे।" गीत में से--पृष्ठ ४५--- "हरि-गुण-गान मयना गाइवार लागिल । उत्तर दक्षिणे चिता पारोपिल ।...... साक्षात् गोरखनाथ आसिया खड़ा रहल ।" पृष्ट ८५ में- "सूर चंद्र बोलि करि वंगदेशे राय । ताराचंद्र नामे हेला ताहार तनय । इहार नंदन शुन ब्रह्मा चंद्रराय । गोपीचंद्रनामे हेलाईहारो कुमारो। विष्णुचंद्र नामे पुत्र हइला ताहारो। विष्णुचंद्र नंदन इला रूपचंद । ततह उत्पत्ति होए गोविंद-ए-चंद्र।" पृष्ट १०२ में- "योगसिध्या हाडिपा कालूपा गोक्ष मीन, सत सिद्धा अवतार गुरुवास हीन; पाटिका नगरे राजा गोविंदचंद्र सूप । जलंदरी हाडिपा हइल हाडि रूप ।” हाडीपा जलंधरपा ही है । कालूपा ४ करहपा (५७) हैं। आपका सांकृत्य-सगोत्र राहुल