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मिश्रबंधु

६ मिश्रबंधु-विनोद इन नाथ कवियों के समय प्रमाणित होने से हिंदी-साहित्य का आरंभ काल सं०८०० तक सिद्ध हो जाता है। हाल ही में प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता बाबू काशीप्रसाद जायसवाल ने सं० ६६३ में राजा होनेवाले महाराजा हर्ष के समकालीन बाण कवि के ग्रंथ में प्राकृत के साथ साषा का भी चलन पाया है। इस भाषा शब्द से हिंदी- भाषा का प्रयोजन निकलता है, लो हिंदी-मापा की प्राचीनता उस काल तक पहुँचती है । अब कवियों का कथन चलता है। (३१०७) नाम-(१) सरहपा (सिद्ध नं० ६)। समय-५०० के लगभग । ग्रंथ-(१) क-ख दोहा, (२) क-ख दोहा टिप्पण, (३) कायकोप-अमृतवज्रगीति, ( ४ ) चित्तकोष-अजवगीति, (५) डाकिनीवज्र-गुह्य गीति, ( ६ ) दोहा-कोप-उपदेश-गीति, (७) दोहा-कोष-गीति, (८) दोहा-कोप-गीति, तत्त्वोपदेश-शिखर, (१) दोहा-कोप-गीतिका, भावना-दृष्टि-चर्याफल, (१०) दोहा- कोप, वसंत-तिलक, (११) दोहा कोप-चांगीति, (१२) दोहा- कोप-महामुद्रोपदेश, (१३ ) द्वादशोपदेश-गाथा, (१४ ) महामुद्रोपदेश बज्रगुह्य गीति, (११) वाक्-कोप-रुविरस्वरवज्र- गीति, (१६) सरह गीतिका । तंजूर के तंत्रखंड से पता चलता है कि इनके उपर्युक्त काव्य-ग्रंथ मगही से भोटिया से अनुवादित हुए हैं। विवरण-इनके दूसरे नाम राहुलभद्र और सरोजभद्र भी हैं। राशी नगर के रहनेवाले ब्राह्मण थे। भिक्षु होकर नालंद-विद्यालय में रहने लगे। लबरपाद इनके प्रधान शिष्य थे। कोई तांत्रिक नागार्जुन भी इनके शिष्य थे। बंगाल-नरेश धर्मपाल का समय ८२६ से ८६६ तक था । उनके लेखक लूहिपा शबरपा के शिष्य थे, जिन शबरपा के गुरु हमारे कवि सरहपा थे ।