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मिश्रबंधु

पूर्व नूतन कि वह मातृभापा के निकट रहे और अधिक से अधिक देश में समझी जा सके। हमारे यहाँ नाटक विभाग बहुत करके भारतेंदु के समय से चला । हमारे प्राचीन नाटककारों में केवल भारतेंदु और श्री- निवासदास सुकवि थे। शेष के नाटक ऊँची कक्षा तक न पहुँच सके। यहाँ पर केवल मौलिक ग्रंथों पर कथन किया जाता है। अनुवादकों में लाला सीताराम, सत्यनारायण ( श्रारा-निवासी), ज्वालाप्रसाद मिश्र, गोपालराम (गहमर-निवासी), रूपनारायण पांडेय श्रादि ने अच्छे अनुवाद किए, किंतु इनकी रचना में भाषा ज्ञान के अतिरिक्त कोई विशेष महत्ता नहीं है । रलचंद ( न्याय-सभा, हिंदी- उर्दू), रामकृष्ण वर्मा, किशोरीलाल गोस्वामी आदि ने भी नाटक रचे, किंतु उस उच्चता के नहीं, जो समाज में उन्हें वाहवाही का भाजन बनावें । नूतन परिपाटीवाले नाटककारों में राधाकृष्णदास (१६४७ ), हरीरामजी त्रिवेदी (१६५०), अक्षयवरप्रसाद साही (१९५०), बलदेवप्रसाद मिश्र (१९५१), कृष्णबलदेव वर्मा (१९५२), हरिपालसिंह (१९९४), प्रजनंदनसहाय (१९९६), रूपनारायण पांडेय (१९६०) तथा रामनारायण (१९६०) के नाम आते हैं। हस ( श्यामबिहारी मिश्र तथा शुकदेवविहारी मिश्र) ने भी चार नाटक बनाए हैं, अर्थात् नेत्रोन्मीलन, पूर्व भारत, उत्तर भारत और शिवाजी । ये सब खेलने के योग्य है। अंतिम नाटक अभी अमुद्रित है। पूर्व भारत तीन जगह खेला जा चुका है । राधा- कृष्णदास का महाराणाप्रताप अच्छा नाटक होकर भी उच्च कोटि का नहीं है । कृष्णबलदेव वर्मा का भतृहरि अच्छे भाव दिखलाता हुआ भी बहुत उत्कृष्ट नहीं है । इतरों के नाटक बहुत नामी नहीं हैं, न समालोचना द्वारा उनके गुण-दोषों पर अभी तक सम्यक प्रकाश पड़ा है । फलतः अभी तक नुतन परिपाटी-कालवाले कवियों